श्रीअयोध्या स्थित श्रीअरविन्द साधनालय व श्रीरामजन्भूमि तीर्थ क्षेत्र

0

इस वर्ष भारत की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के साथ ही साथ श्रीअरविन्द के जन्म की १५०वीं जयन्ती भी मनायी जा रही है। श्रीअरविन्द की इस जयंती के विषय में स्वयं सरकार की गंभीरता उसके द्वारा इसे मनाए जाने के लिए किये गए अभूतपूर्व प्रयासों और मनोयोग से स्पष्ट दिखायी देती है। सर्वप्रथम स्वयं प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली ५३ सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया जिसके अंतर्गत देश-विदेश में अनेकानेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया और अब भी किया जा रहा है। इस क्रम में २६ जनवरी २०२२ को गणतंत्र दिवस परेड में स्वयं संस्कृति मंत्रालय द्वारा श्रीअरविन्द की झाँकी प्रस्तुत की गई। १५०वीं जयंती के उपलक्ष्य में गत वर्ष एक स्मारक डाक-टिकट तथा १५० रूपये के एक स्मारक सिक्के का विमोचन स्वयं प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया। इसी अवसर पर श्रीअरविन्द व श्रीमाताजी के संपूर्ण साहित्य के ३ खंडीय संकलन सेट तथा ‘भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की महानता’ शीर्षक से एक अतिरिक्त पुस्तक का निःशुल्क वितरण भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा श्रीअरविन्द डिवाइन लाइफ ट्रस्ट, झुंझुनू के माध्यम से किया गया। इन सब कार्यों के अतिरिक्त भी अनेकानेक अन्य कार्यक्रमों, अपने भाषणों आदि के माध्यम से प्रधानमंत्री, गृहमंत्री व संस्कृति मंत्रालय का इस पर विशेष बल रहा है कि श्रीअरविन्द के दर्शन का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए। यह एक अकाट्य तथ्य है कि श्रीअरविन्द को बिना समझे भारत व उसकी आत्मा तथा उसके भूत, भविष्य व वर्तमान के कार्य को कभी भली-भाँति नहीं समझा जा सकता है। यह विषय श्रीअरविन्द के जन्म की शताब्दी के अवसर पर श्रीमाताजी के निम्नांकित शब्दों से हमें बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है।

‘‘(१९७२ में, श्रीअरविन्द की) यह शताब्दी ‘उद्देश्यपूर्ण रूप से’ आई है। यह अवश्य ही कुछ ऐसा है जो अब आ रहा है क्योंकि देश के लिए ‘एकमात्र’ मुक्ति, ‘एकमात्र’ वह चीज जो इसे एकजुट कर सकती है, वह है देश के लिए श्रीअरविंद के आदर्श को अपनाना – उनके पास एक योजना थी, उन्होंने बड़ी स्पष्टता से देख लिया था कि देश को कैसे व्यवस्थित किया जाना चाहिए, उन्होंने यह मुझसे कहा था। यदि कोई उनकी पुस्तकों को गंभीरता से पढ़ता है तो यह चीज उनमें विद्यमान है, व्यक्ति इसे देख सकता है। इसीलिए मैंने कहा कि इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिये कि ‘संपूर्ण’ भारत में अध्ययन समूह, पुस्तकालय, व्याख्यान, जो भी हो सके वह सब कुछ हो, ताकि पूरा देश श्रीअरविंद के विचार और उनके संकल्प को जान जाए। और शताब्दी एक अत्युत्तम अवसर है। …इस शताब्दी की व्यवस्था अभी तुरंत, एकाएक ही, इस प्रकार की जानी चाहिये कि वह इस शताब्दी के अवसर पर पूरे देश में फैली हो…और श्रीअरविन्द ने जो कुछ लिखा है उसमें वे वह सब कुछ पाएँगे जो देश को सुव्यवस्थित करने के लिए आवश्यक है।’’ (Mother’s Agenda, Vol. 11, pg. 207)

श्रीमाँ के अनुसार, श्रीअरविन्द, जो विश्व के लिए एक दिव्य भविष्य का आश्वासन लाये हैं, ‘‘जगत् के इतिहास में जिस चीज का प्रतिनिधित्व करतें हैं वह कोई शिक्षा नहीं है, कोई अन्तःप्रकाश भी नहीं है; वह तो परम प्रभु से आई एक निर्णायक क्रिया है।’’ CWM, Vol 13, pg. 4)

श्रीअरविन्द के विषय में इस उद्धरण के प्रकाश में हम कह सकते हैं कि श्रीअरविन्द व उनका कार्य वास्तव में सर्वसमावेशी – अर्थात् सभी पदार्थों, जीवों, मनुष्यों, जातियों, धर्मों, संप्रदायों, भावनाओं और विचारों को समाहित किये हुए – होते हुए भी इनमें से किसी के द्वारा भी सीमित नहीं किया जा सकता है। श्रीअरविन्द के शब्दों में, ‘‘विभिन्न दर्शन और धर्म भगवान् के विभिन्न पहलुओं की वरीयता के बारे में विवाद करते हैं और विभिन्न योगियों, ऋषियों और संतों ने इस या उस दर्शन या धर्म को वरीयता दी है। हमारा कार्य उनमें से किसी के बारे में विवाद करना नहीं है, अपितु उन सभी को अनुभूत करना और वे सभी बन जाना है, बाकी सभी को छोड़कर किसी एक पहलू का अनन्यता में अनुसरण करना नहीं है, अपितु भगवान् को उनके सभी पहलुओं और पहलुओं से परे अंगीकार करना है।’’ (CWSA 12, pg. 99)
यही बात श्रीमाताजी की १९६५ की घोषणा से एकदम स्पष्ट हो जाती है,

यह कहने के बाद हमारी स्थिति स्पष्ट है।
हम किसी मत के, किसी धर्म केे विरुद्ध नहीं लड़ते।
हम सरकार के किसी रूप के विरुद्ध नहीं लड़ते। हम किसी सामाजिक वर्ग के विरुद्ध नहीं लड़ते।
हम किसी राष्ट्र या सभ्यता के विरुद्ध नहीं लड़ते।
हम विभाजन, अचेतनता, अज्ञान, तमस् और मिथ्यात्व के विरुद्ध लड़ रहे हैं।

हम धरती पर एकता, ज्ञान, चेतना, ‘सत्य’ को प्रतिष्ठित करने का उद्यम कर रहे हैं, और जो कुछ ‘प्रकाश’, ‘सत्य’ और ‘प्रेम’ की इस नयी सृष्टि का विरोध करता है हम उसके विरुद्ध लड़ते हैं।’’ (CWM, Vol 13, page 124-25)’’

वर्ष १९८९ में श्रीअयोध्या में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार व मुख्य मंत्री ने गर्मजोशी के साथ श्रीअरविन्द के दिव्य देहांशों का स्वागत किया जब वहाँ स्थित श्रीअरविन्द साधनालय में बाबाजी श्रीरामकृष्ण दासजी द्वारा उनकी स्थापना की गई थी। उक्त साधनालय पर श्रीमाताजी की कृपा तथा भगवान् श्रीराम की स्वीकृति की मुहर का एक स्पष्ट प्रमाण यह भी है कि १९९२ की घटनाओं के बाद जब कि केन्द्रीय सरकार द्वारा श्रीराम मन्दिर के आसपास की सभी सम्पत्तियों का अधिग्रहण कर लिया गया था तब भी तत्कालीन नरसिम्हाराव सरकार द्वारा इसे यथावत रहने दिया गया था। श्रीअरविन्द के दिव्य देहांशों के बारे में उनके एक अंतरंग शिष्य डा. नीरोदबरन लिखते हैंः ‘‘हमने देखा है कि वे (श्रीमाँ) इसे कितना महत्त्व देती हैं … उन्होंने कहा है कि श्रीअरविंद के शरीर का प्रत्येक अणु अतिमानसिक चेतना से भरा था। हम जानते हैं कि जैसे ही उन्होंने उसे छोड़ा उनका शरीर अतिमानसिक प्रकाश से दमक रहा था। वह चेतना कोई नश्वर वस्तु नहीं है जो भौतिक शरीर की मृत्यु के साथ समाप्त हो जाती है। यदि ऐसा होता, तो समाधि को स्पर्श करने पर हमें ऐसी असाधारण शक्ति और सामर्थ्य का अनुभव नहीं होता।

हमने उस शांति और नीरवता को देखा है जहाँ अवशेष स्थापित हैं। इसलिए, देहांश केवल स्मृति चिन्ह नहीं हैं। देहांश श्रीअरविंद की जीवंत उपस्थिति हैं, जो उनकी आजीवन साधना के प्रकाश और शक्ति से ओत-प्रोत हैं, जैसे एक परमाणु अपने आप में एक अनंत शक्ति रखता है – यह देहांश के पीछे की सच्चाई है। उस सत्य को हमेशा जीवित रखना और उसे उचित सम्मान देना यही देहांश हमसे माँग करते हैं।’’ (नीरोदबरन, डिविनिटीज कॉमरेड, रेलिक्स, पृ. २१६-१७)

यह कैसी घोर विडम्बना है कि भारत की स्वतंत्रता – जो भगवान् श्री कृष्ण ने श्रीअरविन्द से किये अपने वादे के अनुरूप उनके जन्मदिन १५ अगस्त पर ही प्रदान की – की ७५वीं वर्षगाँठ पर भारत सरकार द्वारा मनाये जा रहे अमृत महोत्सव व श्रीअरविन्द की १५०वीं जयंती के अवसर पर ही उसी सरकार द्वारा गठित श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र अयोध्या के पदाधिकारियों द्वारा वहाँ स्थित श्रीअरविन्द साधनालय और वहाँ स्थापित श्रीअरविन्द के दिव्य देहांशों को हटाने का प्रयास किया जा रहा है जो इस प्रकार श्रीअरविन्द के प्रति अवमानना प्रदर्शित कर उनके अनगिनत भक्तगणों के हृदयों को पीड़ित कर रहा है।’’


श्रीअरविन्द के भक्तगण विश्वास करना चाहेंगे कि ऐसे प्रयासों का उद्गम कोई बुरी भावना से न होकर मात्र संकुचितता व श्रीअरविन्द व उनके दिव्य कार्य के संबंध में सच्ची समझ का अभाव ही है। अतः श्रीअरविन्द व उनके दिव्य संदेश व कार्य के बारे में यहाँ कुछ निवेदन किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है।

श्रीअरविन्द ने मनुष्यजाति के लिए दिव्य जीवन का संदेश दिया है। उनके अनुसार धरती पर दिव्य जीवन का अवतरण अवश्यंभावी है और पृथ्वी पर मृत्यु व अज्ञान का अन्त होगा। ऐसा अतिमानसिक चेतना के धरती पर अवतरण व पूर्ण विकास द्वारा साधित किया जाएगा। मनुष्य पृथ्वी पर भगवान् की अभिव्यक्ति का आखिरी चरण नहीं है। इस अभिव्यक्ति का अगला चरण होगा अतिमानव या दिव्य मानव जिसकी चेतना भागवत चेतना से ऐक्य के कारण (अपनी सीमा में) उसकी सर्वशक्तिमत्ता, सर्वविज्ञता और सर्वव्यापकता को अभिव्यक्त करेगी। अतिमानव मनुष्य के लिए वैसा ही होगा जैसा मनुष्य पशु के लिए है। परंतु जहाँ पशु अपने किसी भी प्रयत्न द्वारा मनुष्य की चेतना को प्राप्त नहीं कर सकता है, मनुष्य के लिए यह संभव है कि वह भागवत कृपा से समाहित होकर स्वयं अतिमानसिक चेतना प्राप्त कर ले। ऐसा स्पष्ट बोध न होते हुए भी, श्रीअरविन्द के अनुसार, मनुष्य के सारे आध्यात्मिक प्रयासों (तपस्या, योग, साधना) के पीछे यही रहस्य रहा है। इन्हीं प्रयत्नों की पराकाष्ठा है अतिमानसिक चेतना। हमारे ऋषियों एवं अवतारों का वास्तविक कार्य यही रहा है। श्रीअरविन्द के अनुसार श्रीकृष्ण ने अधिमानसिक चेतना – जो अतिमानसिक चेतना से एक स्तर नीचे है परंतु मानसिक चेतना का सर्वोच्च शिखर है – का प्रयोग अपने अवतारिक जीवन व लीलाओं में किया था। जैसा कि हम आगे चलकर देखेंगे कि इन्हीं भगवान् श्रीकृष्ण (जो कि परम प्रभु के स्थायी अवतार हैं) की प्रेरणा से श्रीअरविन्द स्वतंत्रता आंदोलन से हटकर अतिमानसिक साधना हेतु पांडिचेरी चले गये थे। उनके पांडिचेरी प्रवास में १६ वर्ष की साधनोपरान्त उनके भौतिक शरीर में श्रीकृष्ण का अवतरण, श्रीमाँ के द्वारा श्रीकृष्ण से अनुरोध किये जाने पर, २४ नवंबर १९२६ को हुआ। यही दिन सिद्धि दिवस के रूप में प्रसिद्ध है व इसे ही श्रीअरविन्द आश्रम पांडिचेरी की स्थापना के दिवस के रूप में भी मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन से श्रीअरविन्द (श्रीकृष्ण से संयुक्त होकर) अतिमानसिक चेतना के धरती पर अवतरण हेतु कठोर साधना में लग गये थे व श्रीमाँ ने आश्रम की सारी व्यवस्था संभाल ली थी। श्रीमाँ व श्रीअरविन्द के अथक प्रयत्नों से २९ फरवरी १९५६ को पृथ्वी की सूक्ष्म भौतिक चेतना में अतिमानसिक चेतना का अवतरण साधित हुआ, जो कि अतिमानसिक जगत् के अवतरण का पहला चरण था।

श्रीअरविन्द ने हमें बतलाया है कि अतिमानसिक अवतरण से पूर्व ही मनुष्यजाति नष्ट न हो जाये इसके लिए मनुष्यजाति की एकता व अंततोगत्वा एक विश्व सरकार का गठन आवश्यक है व भारत को तथा उसके सनातन धर्म को इस कार्य में अपनी महती भूमिका निभानी है। श्रीअरविंद के अनुसार यदि भारत अपनी महान आध्यात्मिकता व सांस्कृतिक विरासत खोकर पश्चिम की नकल करेगा तो न केवल भारत बल्कि उसके साथ ही साथ सारा विश्व भी नष्ट हो जाएगा। अतः बंदे मातरम्, कर्मयोगी व आर्य में लिखे गए अपने लेखों में उन्होंने भारतीयों को भारत के गौरवशाली अतीत का दर्शन कराया व (वर्तमान की कठिनाइयों के बावजूद) एक अत्यंत सुंदर भविष्य की सुनिश्चितता का आश्वासन दिया। यही नहीं वेद, उपनिषद्, गीता, भारतीय धर्म, संस्कृति, कला, राजनीति पर अपने १० से अधिक ग्रंथों में उन्होंने इन सब को अपने सच्चे उस उच्च स्तर पर पहुँचाया जहाँ से विदेशियों, विधर्मियों, व देश में ही उनके अनुगामियों द्वारा १००० साल की दासता के दौरान नीचे गिरा दिया गया था। इतना सब कुछ एक शरीर के माध्यम से इसीलिए किया जा सका क्योंकि जैसा कि हम श्रीमाँ के शब्दों में पहले ही व्यक्त कर चुके हैं कि श्रीअरविंद ने अपने दिव्य जीवन व लीला में परम प्रभु की सीधी निर्णायक क्रिया को ही अभिव्यक्त किया है।’’

स्वतंत्रता आंदोलन में श्रीअरविंद का योगदान व कार्य जगजाहिर है। अब हम भारतीय संस्कृति, उसकी नियति व सनातन धर्म के सच्चे रहस्यों की झाँकी के लिए उनकी रचनाओं में से कुछ उद्धरण यहाँ प्रस्तुत करते हैं।

‘‘यह जगत् मुक्त विचार और भौतिकवाद के अपरिहार्य अंतरालों से होते हुए धार्मिक विचार और अनुभव के एक नवीन समन्वय की ओर अग्रसर होता है, ऐसे समन्वय की ओर जिसमें विश्व का धार्मिक जीवन असहिष्णुता से मुक्त होते हुए भी आस्था और उत्साह से भरा होता है तथा धर्म के सभी रूपों को स्वीकार करता है क्योंकि एकमेव में उसकी अविचल आस्था होती है। एक ऐसा धर्म जो विज्ञान और विश्वास को, ईश्वरवाद, ईसाईयत, इस्लाम और बौद्ध धर्म को अपने में समेटते हुए भी इनमें से कोई-सा भी नहीं है, वही वह धर्म है जिसकी ओर विश्व-सत्ता अग्रसर होती है। हमारा अपना धर्म सब धर्मों से अधिक संशयशील और सर्वाधिक आस्तिक है, सर्वाधिक संशयशील इसलिए है क्योंकि इसने सबसे अधिक प्रश्न उठाए हैं और प्रयोग किए हैं, सर्वाधिक आस्तिक इसलिए है क्योंकि इसने गहनतम अनुभवों की तथा सर्वाधिक विविध और निश्चयात्मक आध्यात्मिक ज्ञान की उपलब्धि की है, – वह बृहत्तर हिंदुत्व जो एक मतवाद या मतवादों का समूह-मात्र नहीं है, अपितु जीवन का एक विधान है, जो एक सामाजिक ढाँचा नहीं, अपितु पूर्व और भावी विकास की आत्मा है, जो कि (यह बृहत्तर हिंदुत्व) किसी भी चीज को नकारता नहीं है अपितु हर चीज की जाँच-परख और अनुभूति करने का आग्रह रखता है और तदुपरान्त उस चीज को आत्मा के लिए उपयोगी बना लेता है, इसी हिंदुत्व में हम भावी विश्व-धर्म का आधार पाते हैं। इस सनातन धर्म के अनेक धर्मग्रंथ हैं, वेद, वेदांत, गीता, उपनिषद्, दर्शन, पुराण और तंत्र, और न यह बाइबल और कुरान को ही नकार सकता था, परंतु इसका सर्वाधिक प्रामाणिक शास्त्र तो उस हृदय में स्थित है जिसमें शाश्वत का निवास स्थान है। हमारे आंतरिक आध्यात्मिक अनुभवों में ही हमें जगत् के सभी शास्त्रों का प्रमाण और स्रोत, हमारे ज्ञान, प्रेम और व्यवहार का विधान तथा हमारे कर्मयोग की प्रेरणा और आधार प्राप्त हो सकता है।’’ (CWSA 8, pg. 26)

अलीपुर जेल से छूटने के बाद दिये गए अपने उत्तरपाड़ा भाषण में श्रीअरविन्द कहते हैं, ‘‘मैं अब और अधिक यह नहीं कहता कि राष्ट्रवाद कोई सिद्धांत, धर्म या कोई मत-विश्वास है; मैं कहता हूँ यह सनातन धर्म ही है जो हमारे लिए राष्ट्रवाद है। इस हिंदू राष्ट्र का प्रादुर्भाव सनातन धर्म के साथ ही हुआ, उसके साथ ही यह आगे गति करता है और उसके साथ ही यह विकसित होता है। जब सनातन धर्म का ह्रास (पतन) होता है तब राष्ट्र का भी पतन होता है और यदि सनातन धर्म नष्ट हो सकता हो तो सनातन धर्म के साथ ही यह भी नष्ट हो जाएगा। सनातन धर्म, यह ही राष्ट्रवाद है।’’ (CWSA 8: 12)

‘‘बहुधा हम हिंदू धर्म, सनातन धर्म की बातें करते हैं, किंतु हममें से कम ही लोग वास्तव में यह जानते हैं कि वह धर्म है क्या। दूसरे धर्म मुख्य रूप से विश्वास और मान्यता पर आधारित हैं, किंतु सनातन धर्म तो स्वयं जीवन है, यह कोई विश्वास रखने की नहीं अपितु जीवन में उतारने की चीज है। यही वह धर्म है जिसका पोषण मानव-जाति के कल्याण के लिए प्राचीन काल से इस प्रायद्वीप के एकांत में होता आ रहा है। यही धर्म प्रदान करने के लिए भारत उदित हो रहा है। भारतवर्ष, दूसरे राष्ट्रों की भाँति, अपने लिए ही या शक्तिशाली होकर दूसरोें को कुचलने के लिए नहीं उठ रहा। वह उदित हो रहा है सारे संसार पर उस सनातन ज्योति को फैलाने के लिए जो उसे सौंपी गई है। भारत अपने लिए नहीं अपितु सदैव ही मानव-जाति के लिए अस्तित्वमान रहा है, उसे अपने लिए नहीं अपितु मानवजाति के लिए महान् होना होगा।’’ (CWSA 8: 5-6)

‘‘जब मैं भगवान् की ओर बढ़ा, उस समय, कदाचित् ही मुझे उनमें जीवंत श्रद्धा थी। मेरे अंदर संशयवादी था, अनीश्वरवादी था, संदेहवादी था और मुझे पूरी तरह विश्वास न था कि यत्किंचित् भगवान् हैं भी। मैं उनकी उपस्थिति का अनुभव नहीं करता था। फिर भी कोई चीज थी जिसने मुझे वेद के सत्य की ओर, गीता के सत्य की ओर, हिंदूधर्म के सत्य की ओर आकर्षित किया। मुझे लगा कि इस योग में कहीं पर कोई महाशक्तिशाली सत्य अवश्य होना चाहिए, वेदांत पर आधारित इस धर्म में कोई परम बलशाली सत्य अवश्य होना चाहिए। इसलिए जब मैं योग की तरफ मुड़ा और योगाभ्यास करके यह जानने का संकल्प किया कि मेरी बात सच्ची है या नहीं तो मैंने उसे इस भाव और प्रार्थना से शुरू किया, मैंने कहा, ‘‘यदि ‘तुम’ हो तो ‘तुम’ मेरे हृदय की बात जानते हो। तुम जानते हो कि मैं मुक्ति नहीं माँगता, मैं ऐसी कोई वस्तु नहीं माँगता हूँ, जो दूसरे माँगा करते हैं। मैं केवल इस राष्ट्र को ऊपर उठाने की शक्ति माँगता हूँ, मैं केवल यह माँगता हूँ कि मुझे इस देश के लोगों के लिए, जिनसे मैं प्यार करता हूँ, जीने और कर्म करने को मिले और यह प्रार्थना करता हूँ कि मैं अपना जीवन उनके लिए अर्पित कर सकूँ।…इस योगयुक्त अवस्था में मुझे दो संदेश मिले। पहला यह था, ‘मैंने तुम्हें एक कार्य सौंपा है और वह है इस राष्ट्र के उत्थान में सहायता देना।’ दूसरा संदेश आया, वह इस प्रकार था, ‘इस एक वर्ष के एकांतवास में तुम्हें कुछ दिखाया गया है, वह चीज दिखायी गई है जिसके बारे में तुम्हें संदेह था, वह है हिंदूधर्म का सत्य। इसी धर्म को मैं संसार के सामने उठा रहा हूँ, यही वह धर्म है जिसे मैंने ऋषि-मुनियों और अवतारों के द्वारा विकसित किया और पूर्ण बनाया है और अब यह धर्म अन्य राष्ट्रों में मेरा काम करने के लिए बढ़ रहा है। मैं अपनी वाणी का प्रसार करने के लिए इस राष्ट्र को उठा रहा हूँ। यही वह सनातन धर्म है, यही वह शाश्वत धर्म है वास्तव में जिसे तुम पहले तो नहीं जानते थे, किंतु जिसे अब मैंने तुम्हारे सामने प्रकट कर दिया है। तुम्हारे अंदर जो नास्तिकता थी, जो संदेह था उनका उत्तर दे दिया गया है, क्योंकि मैंने अंदर और बाहर, स्थूल और सूक्ष्म, सभी प्रमाण दे दिये हैं और उनसे तुम्हें संतोष हो गया है। जब तुम बाहर निकलो तो सदा अपने राष्ट्र को यही वाणी सुनाना कि वे सनातन धर्म के लिए उठ रहे हैं, वे अपने लिए नहीं अपितु संसार के लिए उठ रहे हैं। मैं उन्हें संसार की सेवा के लिए स्वतंत्रता दे रहा हूँ। अतएव जब यह कहा जाता है कि भारतवर्ष ऊपर उठेगा तो उसका अर्थ होता है सनातन धर्म ऊपर उठेगा। जब कहा जाता है कि भारतवर्ष महान् होगा तो उसका अर्थ होता है सनातन धर्म महान् होगा। जब कहा जाता है कि भारतवर्ष बढ़ेगा और फैलेगा तो इसका अर्थ होता है सनातन धर्म बढ़ेगा और संसार पर छा जाएगा। धर्म के लिए और धर्म के द्वारा ही भारत का अस्तित्व है।’ धर्म को महिमान्वित करने का अर्थ है राष्ट्र को महिमान्वित करना।’’ (CWSA 8: pg. 9-10)

श्रीअरविन्द को प्रदान किये ये संदेश अलीपुर जेल के एकांतवास में उन्हीं भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा प्रदान किये गये थे जो वैष्णव भक्तों के विश्वास के अनुसार त्रेता युग में भगवान् श्रीराम के रूप में प्रकट हुए थे और जिनकी अपार महिमा सभी आक्रमणकारियों के अथक प्रयत्नों के बाद भी इस देश के वासियों के हृदय में अमिट रही है और बढ़ रही है। ऐसे में श्रीरामजन्मभूमि मंदिर अयोध्या परिसर से सटे, श्रीअरविन्द के देहांश स्थापित, साधनालय का होना, हिन्दू मान्यता के अनुसार उस स्थान को एक दिव्य शक्तिपीठ बना देता है। यह केवल कोई दैव संयोग नहीं अपितु इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि किस प्रकार श्रीअरविन्द का कार्य श्रीराम के कार्य को समाहित करता है और उससे सर्वथा सुसंगत रहा है।

अपने ३०.९.२०२२ से कुछ समय पूर्व के अदिनांकित पत्र में श्रीचंपत राय जी, महासचिव, श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, रामकोट, अयोध्या ने श्रीअरविन्द आश्रम ट्रस्ट, पांडिचेरी के ट्रस्टीगणों से उक्त तीर्थ क्षेत्र से सटे हुए महर्षि श्रीअरविन्द के आश्रम परिसर को प्रदान करने व उसकी एवज में एक नया आश्रम बनाने के लिए एक दूसरा वैकल्पिक सर्वोत्तम भूभाग स्वीकार करने का अनुरोध किया। इसके उत्तर में अपने ३०.९.२०२२ के पत्र (मूल अंग्रेजी भाषा में लिखे) में मैनेजिंग ट्रस्टी श्री मनोज दास गुप्ता ने, कुछ अन्य बातों के बाद, लिखाः ‘‘कुछ ऐसे विचार हैं जो श्रीअरविंद आश्रम ट्रस्ट बोर्ड को किसी भी निर्णय पर पहुँचते समय ध्यान में रखने चाहिए।

अयोध्या में श्रीअरविंद साधनालय के लिए भूमि १९५९ में श्रीमाताजी को दान विलेख में दानकर्ता द्वारा निर्दिष्ट स्पष्ट इरादों के साथ दान की गई थी कि इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए। श्रीमाताजी ने दानकर्ता की भावनाओं की कद्र करते हुए उपहार स्वीकार किया। संपत्ति को स्वीकार करने पर, श्रीमाताजी ने कुछ साधकों को संपत्ति की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया जिन्होंने इसे एक साधनालय के उद्देश्यों को सार्थक करने के लिए ध्यान और चिंतन के स्थान के रूप में विकसित करने के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया। साधकों के प्रयासों और साधनालय (यूपी में एकमात्र) के विकास को सराहते हुए, श्रीअरविंद के पवित्र देहांशों की स्थापना १९८९ में हुई। पवित्र देहांशों की उपस्थिति और साधकों की निष्ठा-समर्पण के कारण वहाँ एक गहरा आध्यात्मिक वातावरण बनाया गया है।

ट्रस्टीगण के रूप में, हम केवल ट्रस्ट की संपत्तियों के संरक्षक हैं। इसमें हमारी भूमिका बहुत स्पष्ट है कि हमें संपत्तियों को मूल उद्देश्य के लिए बनाए रखना है जिसके लिए कि संपत्तियाँ ट्रस्ट के पास निहित हैं। हमें कोई भी निर्णय लेते समय आश्रम के साधकों और भक्तों की भावनाओं को भी ध्यान में रखना होगा।

इस संबंध में, मंदिर की सीमाओं के भीतर विभिन्न गुरुओं और संतों के लिए मंदिर बनाने की आपकी योजनाओं का उल्लेख करना उचित होगा – श्री वाल्मीकि स्वामी, श्री अगस्त्य मुनि (जिन्होंने, संयोगवश, फ्रांसीसी शोधकर्ताओं के अनुसार वेदपुरी की स्थापना की थी जिसे अब पांडिचेरी के रूप में जाना जाता है) और अन्य जिनका उल्लेख किया गया था।

हमारा साधनालय, मंदिर से सटे होने के कारण, भक्तों के लिए आध्यात्मिक खोज के ही एक अन्य प्रभावी स्थान के रूप में देखा जा सकता है और जो हमें मंदिर के ही समग्र उद्देश्य और भविष्य में इसकी महिमा के विपरीत प्रतीत नहीं होता।

इन परिस्थितियों में, हम सभी ने यह महसूस किया कि श्रीअरविंद साधनालय और श्री राम जन्मभूमि मंदिर साथ-साथ बने रह सकते हैं।’’ (मूल अंग्रेजी पत्र का हिन्दी रूपांतर)

श्री मनोज दास गुप्ता द्वारा इस पत्र में कही सभी बातें बहुत ही उल्लेखनीय हैं और किसी भी ट्रस्ट के प्रबंधकों के सच्चे दायित्वों को श्रीअरविन्द व श्रीराम मंदिर की पूर्ण सुसंगतता के विषय में व श्रीअरविन्द आश्रम के स्पष्ट दृष्टिकोण को दर्शाती है जो एक ऐसे सत्य पर आधारित है जो समय के साथ भी बदल नहीं सकता।
श्री मनोज दास गुप्ता के उक्त पत्र के उत्तर में लिखे अपने ७.११.२०२२ के पत्र में श्री चंपत राय जी ने उनसे अपने पूर्व के निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। आश्रम ट्रस्ट से सतत संपर्क में रहने वाले विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भीतर और बाहर दोनों ही ओर से अनेकानेक दबावों और प्रलोभनों के चलते श्रीअरविन्द आश्रम ट्रस्ट के ट्रस्टीगण इस विषय में अपने उपरोक्त सच्चे व श्रीअरविन्द के प्रति भक्ति व निष्ठा से पूर्ण निर्णय और रुख को छोड़कर अब जिस भूमि पर श्रीअरविन्द का साधनालय व उनके पवित्र देहांश स्थापित हैं उसे अन्यत्र कोई भू खण्ड व कुछ धन के बदले में श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र को हस्तांतरित करने के उद्योग में लगे हुए हैं। किस प्रकार के भीतरी व बाहरी दबावों से वशीभूत हो हमारे इन भाइयों ने इस प्रकार के विनाशकारी व निंदनीय कृत्य में सहयोग करने का मानस बना लिया है यह तो श्री मनोज दास व उनके साथी ट्रस्टी गणों को ही विदित है।

 

अतः सभी सनातन धर्म के प्रेमियों व सबसे बढ़कर भगवान् श्रीराम व श्रीअरविन्द के भक्तों को चाहिये कि ऐसे संकुचित व विनाशकारी कृत्य का यथासंभव विरोध करें। भारत सरकार को चाहिये कि इस प्रकार के प्रयत्नों को फलीभूत न होने दे व इस प्रकार के विचार को ही न पनपने दे। ऐसे विशेष मुहूर्त पर जबकि उनकी १५०वीं वर्षगाँठ पर हमें श्रीअरविन्द की पावन जयंती मनाने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि उनके साधनालय और समाधि के साथ किसी भी प्रकार कोई अवमानना का प्रयास किया जाए। एक ऐसे स्थान पर उनकी समाधि का स्थित होना जहाँ प्रतिदिन हजारों आगंतुक न केवल श्रीराम मंदिर की ही परिक्रमा करते हैं अपितु एक नये युग के प्रणेता श्रीअरविन्द की समाधि के दर्शन भी करते हैं, जितने कि स्वयं पांडिचेरी स्थित आश्रम में ही विशेष अवसरों को छोड़कर अन्य दिनों शायद ही आते होंगे, यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं है अपितु भारत में रामराज्य और श्रीअरविन्द के आलोक में भारत के पुनर्जागरण का आश्वासन है।अतः इस प्रकार के संकुचित व विभाजनकारी कृत्यों में न उलझकर चलो हम सब श्रीमाँ के इन शब्दों को दोहराएँ कि: ‘‘आओ हम सब मिलकर भारत की महानता के लिए कार्य करें।’’

तरुण खेतान
श्रीअरविन्द व श्रीमाताजी का एक सेवक
श्रीअरविन्द दिव्य जीवन आश्रम, झुंझुनू (राजस्थान)

 

Related Documents

01. (23.10.2019) Letter from Sri Aurobindo Ashram to Ayodhya Mediation Committee

02. (24.10.2019) LETTER BY NIKHIL BHARTIYA VIKAS SAMITI

03. (Before 30 September 2022) ShriRamJanmaBhoomiTeerthKshetra To Pondicherry Ashram

04. (30.9.2022) ManagingTrusteePondicherry AshramToRamJanmabhoomi Teerth Khestra

05. (7.11.2022) ShriRamJanmabhoomiToPondicherry ManojDas

06. (23.1.23) LetterfromSriAurobindoDivineLifeTrustJhunjhunu to Pondicherry

07. (8June2023) SriArvind Sadhanalaya Ayodhya (AmarUjalaLucknowEdition)

08. (25June2023) AmarUjala NewspaperArticle

09. Ayodhyabooklet

10. EditorialPrintedin AmarUjala 25June2023

11. Chronology of Events

 

 

 

 

Share.

Leave A Reply