क्या श्रीराम व श्रीअरविन्द अयोध्या में साथ-साथ रह सकते हैं?

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श्रीअरविन्द आश्रम जिसका कि श्रीअरविन्द साधनालय अयोध्या में है उसके मैनेजिंग ट्रस्टी का जवाब तो ‘‘हाँ’’ में हैं व श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के पदाधिकारियों का जवाब ‘‘ना’’ में है।

विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अधिकारी अयोध्यास्थित श्रीअरविन्द आश्रम पांडिचेरी की करीब ३ एकड़ भूमि में फैले हुए श्रीअरविन्द साधनालय – जहाँ श्रीअरविन्द के पवित्र देहांश भी स्थापित हैं – को वहाँ से हटाने के उद्योग में लगे हुए हैं।

यहाँ बात उन श्रीअरविन्द की है जिनकी देश की आजादी व भारत के पुनर्जागरण में केंद्रीय भूमिका रही है। वे श्रीअरविन्द जिन्होंने मनुष्यजाति को दिव्य जीवन का संदेश दिया व उसके लिए सब कुछ किया। उन्होंने ही हमें सनातन धर्म का मंत्र दिया व उसके द्वारा मनुष्यजाति की एकता का रहस्य बताया। वे श्रीअरविन्द जिनके बारे में श्रीरविन्द्रनाथ टैगोर ने कहाः

“Rabindranath, O Aurobindo, bows to thee!
O friend, my country’s friend, O voice incarnate, free,
Of India’s soul! No soft renown doth crown thy lot,
Nor pelf or careless comfort is for thee; thou’st sought
No petty bounty, petty dole; the beggar’s bowl
Thou n’er hast held aloft. …
Where is the coward who will shed tears today, or wail
Or quake in fear? And who’ll belittle truth to seek
His own small safety? Where’s the spineless creature weak
Who will not in thy pain his strength and courage find ?
O wipe away those tears, O thou of craven mind !
The fiery messenger that with the lamp of God Hath come…”

अपने ३०.९.२०२२ के पत्र (मूल अंग्रेजी भाषा में लिखे) में मैनेजिंग ट्रस्टी श्री मनोज दास गुप्ता ने, कुछ अन्य बातों के बाद, लिखाः ‘‘कुछ एेसे विचार हैं जो श्रीअरविंद आश्रम ट्रस्ट बोर्ड को किसी भी निर्णय पर पहुँचते समय ध्यान में रखने चाहिए।

अयोध्या में श्रीअरविंद साधनालय के लिए भूमि १९५९ में श्रीमाताजी को दान विलेख में दानकर्ता द्वारा निर्दिष्ट स्पष्ट इरादों के साथ दान की गई थी कि इसका उपयोग कैसे किया जाना चाहिए। श्रीमाताजी ने दानकर्ता की भावनाओं की कद्र करते हुए उपहार स्वीकार किया। संपत्ति को स्वीकार करने पर, श्रीमाताजी ने कुछ साधकों को संपत्ति की देखभाल करने के लिए नियुक्त किया जिन्होंने इसे एक साधनालय के उद्देश्यों को सार्थक करने के लिए ध्यान और चिंतन के स्थान के रूप में विकसित करने के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया। साधकों के प्रयासों और साधनालय (यूपी में एकमात्र) के विकास को सराहते हुए, श्रीअरविंद के पवित्र देहांशों की स्थापना १९८९ में हुई। पवित्र देहांशों की उपस्थिति और साधकों की निष्ठा-समर्पण के कारण वहाँ एक गहरा आध्यात्मिक वातावरण बनाया गया है।

ट्रस्टीगण के रूप में, हम केवल ट्रस्ट की संपत्तियों के संरक्षक हैं। इसमें हमारी भूमिका बहुत स्पष्ट है कि हमें संपत्तियों को मूल उद्देश्य के लिए बनाए रखना है जिसके लिए कि संपत्तियाँ ट्रस्ट के पास निहित हैं। हमें कोई भी निर्णय लेते समय आश्रम के साधकों और भक्तों की भावनाओं को भी ध्यान में रखना होगा।

इस संबंध में, मंदिर की सीमाओं के भीतर विभिन्न गुरुओं और संतों के लिए मंदिर बनाने की आपकी योजनाओं का उल्लेख करना उचित होगा – श्री वाल्मीकि स्वामी, श्री अगस्त्य मुनि (जिन्होंने, संयोगवश, फ्रांसीसी शोधकर्ताओं के अनुसार वेदपुरी की स्थापना की थी जिसे अब पांडिचेरी के रूप में जाना जाता है) और अन्य जिनका उल्लेख किया गया था।

हमारा साधनालय, मंदिर से सटे होने के कारण, भक्तों के लिए आध्यात्मिक खोज के ही एक अन्य प्रभावी स्थान के रूप में देखा जा सकता है और जो हमें मंदिर के ही समग्र उद्देश्य और भविष्य में इसकी महिमा के विपरीत प्रतीत नहीं होता।

इन परिस्थितियों में, हम सभी ने यह महसूस किया कि श्रीअरविंद साधनालय और श्री राम जन्मभूमि मंदिर साथ-साथ बने रह सकते हैं।’’ (मूल अंग्रेजी पत्र का हिन्दी रूपांतर)

श्री मनोज दास गुप्ता द्वारा इस पत्र में कही सभी बातें बहुत ही उल्लेखनीय हैं और किसी भी ट्रस्ट के प्रबंधकों के सच्चे दायित्वों को श्रीअरविन्द व श्रीराम मंदिर की पूर्ण सुसंगतता के विषय में व श्रीअरविन्द आश्रम के स्पष्ट दृष्टिकोण को दर्शाती है जो एक एेसे सत्य पर आधारित है जो समय के साथ भी बदल नहीं सकता।

श्री मनोज दास गुप्ता के उक्त पत्र के उत्तर में लिखे अपने ७.११.२०२२ के पत्र में श्री चंपत राय जी ने उनसे अपने पूर्व के निर्णय पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया। आश्रम ट्रस्ट से सतत संपर्क में रहने वाले विश्वस्त सूत्रों के अनुसार भीतर और बाहर दोनों ही ओर से अनेकानेक दबावों और प्रलोभनों के चलते श्रीअरविन्द आश्रम ट्रस्ट के ट्रस्टीगण इस विषय में अपने उपरोक्त सच्चे व श्रीअरविन्द के प्रति भक्ति व निष्ठा से पूर्ण निर्णय और रुख को छोड़कर अब जिस भूमि पर श्रीअरविन्द का साधनालय व उनके पवित्र देहांश स्थापित हैं उसे अन्यत्र कोई भू खण्ड व कुछ धन के बदले में श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र को हस्तांतरित करने के उद्योग में लगे हुए हैं। किस प्रकार के भीतरी व बाहरी दबावों से वशीभूत हो हमारे इन भाइयों ने इस प्रकार के विनाशकारी व निंदनीय कृत्य में सहयोग करने का मानस बना लिया है यह तो श्री मनोज दास व उनके साथी ट्रस्टी गणों को ही विदित है।
अतः सभी सनातन धर्म के प्रेमियों व सबसे बढ़कर भगवान् श्रीराम व श्रीअरविन्द के भक्तों को चाहिये कि एेसे संकुचित व विनाशकारी कृत्य का यथासंभव विरोध करें। भारत सरकार को चाहिये कि इस प्रकार के प्रयत्नों को फलीभूत न होने दे व इस प्रकार के विचार को ही न पनपने दे। एेसे विशेष मुहूर्त पर जबकि हाल ही में उनकी १५०वीं वर्षगाँठ पर हमें श्रीअरविन्द की पावन जयंती मनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, यह बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा कि उनके साधनालय और समाधि के साथ किसी भी प्रकार कोई अवमानना का प्रयास किया जाए। एक एेसे स्थान पर उनकी समाधि का स्थित होना जहाँ प्रतिदिन हजारों आगंतुक न केवल श्रीराम मंदिर की ही परिक्रमा करते हैं अपितु एक नये युग के प्रणेता श्रीअरविन्द की समाधि के दर्शन भी करते हैं, जितने कि स्वयं पांडिचेरी स्थित आश्रम में ही विशेष अवसरों को छोड़कर अन्य दिनों शायद ही आते होंगे, यह कोई आकस्मिक संयोग नहीं है अपितु भारत में रामराज्य और श्रीअरविन्द के आलोक में भारत के पुनर्जागरण का आश्वासन है। अतः इस प्रकार के संकुचित व विभाजनकारी कृत्यों में न उलझकर चलो हम सब श्रीमाँ के इन शब्दों को दोहराएँ कि ः

‘‘आओ हम सब मिलकर भारत की महानता के लिए कार्य करें।’’

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